भद्रता और अभद्रता के मध्य का अन्तर समाप्त हो रहा है। आज सबसे ज्यादा अभद्रता और अश्लील; सर्वश्रेष्टता के पुरस्कारो पर विजय हासिल कर रहा है। अब कला बेहूदगी कि अभिव्यक्ति का साधन मात्र रह गई है कला का यह स्वरुप "डर्टी पिक्चर्स" के रूप में अब हमारी संस्कृति पर आघात कर रहा है।
जाकिर नाईक, जन्नतवासी हुसैन हो या दाउद के द्वारा वित्तपोषित फिल्मे; हमारे देश, संस्कृति और संतो को निरंतर अपमानित करने में हि प्रयास रत है। जाकिर नाईक सदृश्य हजारों मुझाहिदीन(जिहादी) आज इंटरनेट पर भी सक्रिय ...वे वेद, पुराण, गीता, भागवत, देवी देवताओ की नित् नये प्रकार से बुराई और अपमान में लिप्त रहते है और हमारे हिन्दू-भाई, अच्छे-बच्चे(Good-Boy) बने निरंतर अपमानो को झेलते रहते है और अपने मन को शांत कर लेते है की कही बिगडैल बच्चो को बुरा न लग जाये। लेकिन यह शांति अब कायरता का सन्देश दे रही है। मेरे ये शब्द साम्प्रदायिक नहीं .......धर्म की रक्षा के लिये है शतप्रतिशत धार्मिक है। किसी को बुरा लगता हो लगे सत्य को साहस की आवश्यकता होती है कहने में भी और स्वीकारने में भी ~ (वर्षा सिंह) ..............जय भारतवन्देमातरम....जय श्री कृष्ण
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