कर्तव्य के पुनीत पथ को हमने स्वेद से सींचा है,
कभी-कभी अपने अश्रु और प्राणों का अर्ध्य भी दिया है।
किंतु, अपनी ध्येय-यात्रा में हम कभी रुके नहीं हैं।
किसी चुनौती के सम्मुख कभी झुके नहीं हैं।
आज, जब कि राष्ट्र-जीवन की समस्त निधियाँ,
दाँव पर लगी हैं, और,
एक घनीभूत अंधेरा हमारे जीवन के
सारे आलोक को निगल लेना चाहता है;
हमें ध्येय के लिए जीने, जूझने और
आवश्यकता पड़ने पर मरने के संकल्प को दोहराना है।
आग्नेय परीक्षा की इस घड़ी में
आइए, अर्जुन की तरह उद्घोष करें :
‘‘न दैन्यं न पलायनम्।’’
--अटल बिहारी वाजपेयी ‘‘न दैन्यं न पलायनम्।’’
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