Pages

Thursday, September 13, 2012

मौत से ठन गई -अटल बिहारी बाजपेयी


maut se than gai atal bihari
|| मौत से ठन गई ! ||

ठन गई! मौत से ठन गई!

जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,

रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई।

मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं।

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ,
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?

तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आज़मा।

मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।

बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं।

प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला।

हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।

आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,
नाव भँवरों की बाँहों में मेहमान है।

पार पाने का क़ायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफ़ाँ का, तेवरी तन गई।

मौत से ठन गई। —

Saturday, September 1, 2012

लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती


लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है,
मन का विश्वास रगों मैं साहस भरता है,
चढ़कर गिरना गिरकर चढ़ना न अखरता है,
मेहनत उसकी बेकार हर बार नहीं होती,
कोशिश करनेवालों की कभी हर नहीं होती।

डुबकियां सिन्धुमें गोताखोर लगता है,
जा जा कर खालीहाथ लौटकर आता है,
मिलते न सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दूना विश्वास इसी हैरानी में,
मुट्ठी उसकी खाली हरबार नहीं होती,
कोशिश करनें वालों की कभी हार नही होती।

असफलता एक चुनौती है स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई देखो और सुधार करो,
जब तक न सफल हो नींद चैन की त्यागो तुम,
संघर्षोंका मैदान छोड़ मत भागो तुम,
कुछ किए बिना ही जयजयकार नही होती,
कोशिश करनें वालों की कभी हार नही होती।