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Monday, October 29, 2012

Indian Army Sending Mujahideen to Jannat since 1947


Indian Army 

Providing free transport service to Jannat 
for Mujahideens since 1947

Rush to avail the limited offer and win a chance to meet 72 virgins

Sunday, October 28, 2012

Vietnamese Mahayana Buddhist monk set himself on fire



In 1963 a Vietnamese Mahayana Buddhist monk set himself on fire in protest of the persecution of Buddhists by the government of South Vietnam. Malcolm Browne was there to photograph it, and received a Pulitzer Prize for it. The body of the monk was re-cremated, however his heart remained intact. Buddhists saw this as a symbol of compassion, and saw in him a bodhisattva (enlightenment-being), which made an even bigger impact on the public.

Friday, October 26, 2012

न दैन्यं न पलायनम् - अटल बिहारी वाजपेयी


कर्तव्य के पुनीत पथ को हमने स्वेद से सींचा है,
कभी-कभी अपने अश्रु और प्राणों का अर्ध्य भी दिया है।

किंतु, अपनी ध्येय-यात्रा में हम कभी रुके नहीं हैं।
किसी चुनौती के सम्मुख कभी झुके नहीं हैं।

आज, जब कि राष्ट्र-जीवन की समस्त निधियाँ,
दाँव पर लगी हैं, और,
एक घनीभूत अंधेरा हमारे जीवन के
सारे आलोक को निगल लेना चाहता है;

हमें ध्येय के लिए जीने, जूझने और
आवश्यकता पड़ने पर मरने के संकल्प को दोहराना है।

आग्नेय परीक्षा की इस घड़ी में
आइए, अर्जुन की तरह उद्घोष करें :
‘‘न दैन्यं न पलायनम्।’’

--अटल बिहारी वाजपेयी ‘‘न दैन्यं न पलायनम्।’’

Monday, October 22, 2012

घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ


मैं भी गीत सुना सकता हूँ , शबनम के अभिनन्दन के,
मैं भी ताज पहन सकता हूँ नंदन वन के चन्दन के
लेकिन जब तक पगडण्डी से संसद तक कोलाहल है
तब तक केवल गीत लिखूंगा जन गन मन के क्रंदन के

जब पंछी के पंखो पर हो पहरे बम और गोली के
जब पिंजरे में कैद पड़े हो सुर कोयल की बोली के
जब धरती के दामन पर हो दाग लहू की होली के
कोई कैसे गीत सुना दे बिंदिया कुमकुम रोली के
मैं झोपड़ियों का चारण हूँ आंसू गाने आया हूँ
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ

अन्धकार में समां गए जो तूफानों के बीच जले
मंजिल उनको मिली कभी जो चार कदम भी नहीं चले
क्रांतिकथा में गौण पड़े है गुमनामी की बाहों में
गुंडे तस्कर तने खड़े है राजमहल की राहों में

यहाँ शहीदों की पावन गाथाओं को अपमान मिला
डाकू ने खादी पहनी तो संसद में सम्मान मिला
राजनीति में लोह पुरुष जैसा सरदार नहीं मिलता
लाल बहादुर जी जैसा कोई किरदार नहीं मिलता
ऐरे गैरे नत्थू खैरे तंत्री बनकर बैठे है
जिनको जेलों में होना था मंत्री बनकर बैठे है

लोकतंत्र का मंदिर भी बाज़ार बनाकर डाल दिया
कोई मछली बिकने का बाज़ार बना कर डाल दिया
अब जनता को संसद भी प्रपंच दिखाई देती है
नौटंकी करने वालों का मंच दिखाई देती है

पांचाली के चीर हरण पर जो चुप पाए जायेंगे
इतिहासों के पन्नो में वे सब कायर कहलाये जायेंगे
कहाँ बनेंगे मंदिर मस्जिद कहाँ बनेगी रजधानी
मंडल और कमंडल पी गए सबकी आँखों का पानी

प्यार सिखाने वाले बस ये मजहब के स्कूल गए
इस दुर्घटना में हम अपना देश बनाना भूल गए
कहीं बमों की गर्म हवा है और कहीं त्रिशूल जले
सांझ चिरैया सूली टंग गयी पंछी गाना भूल चले

आँख खुली तो पूरा भारत नाखूनों से त्रस्त मिला
जिसको जिम्मेदारी दी वो घर भरने में व्यस्त मिला
क्या यही सपना देखा था भगत सिंह की फ़ासी ने?
जागो राजघाट के गाँधी तुम्हे जगाने आया हूँ
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ

जो अच्छे सच्चे नेता है उन सबका अभिनन्दन है
उनको सौ सौ बार नमन है मन प्राणों से वंदन है
जो सच्चे मन से भारत माँ की सेवा कर सकते है
हम उनके कदमो में अपने प्राणों को भी धर सकते है

लेकिन जो कुर्सी के भूखे दौलत के दीवाने है
सात समुंदर पार तिजोरी में जिनके तहखाने है
जिनकी प्यास महासागर है भूख हिमालय पर्वत है
लालच पूरा नीलगगन है दो कौड़ी की इज्जत है

इनके कारण ही बनते है अपराधी भोले भाले
वीरप्पन पैदा करते है नेता और पुलिस वाले
केवल सौ दिन को सिंघासन मेरे हाथों में दे दो
काला धन वापस न आये तो मुझको फांसी दे दो

जब कोयल की डोली गिद्धों के घर में आ जाती है
तो बागला भगतो की टोली हंसों को खा जाती है
जब जब भी जयचंदो का अभिनन्दन होने लगता है
तब तब सापों के बंधन में चन्दन रोने लगता है

जब फूलों को तितली भी हत्यारी लगने लगती है
तो माँ की अर्थी बेटों को भारी लगने लगती है
जब जुगनू के घर सूरज के घोड़े सोने लगते है
तो केवल चुल्लू भर पानी सागर होने लगते है

सिंघो को म्याऊँ कह दे क्या ये ताकत बिल्ली में है
बिल्ली में क्या ताकत होती कायरता तो दिल्ली में है
कहते है कि सच बोलो तो प्रण गवाने पड़ते है
मैं भी सच्चाई को गाकर शीश कटाने आया हूँ
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ

कोई साधू सन्यासी पर तलवारे लटकाता है
काले धन की केवल चर्चा पर भी आँख चढ़ाता है
कोई हिमालय ताजमहल का सौदा करने लगता है
कोई यमुना गंगा अपने घर में भरने लगता है

कोई तिरंगे झंडे को फाड़े फूके आज़ादी है
कोई गाँधी को भी गाली देने का अपराधी है
कोई चाकू घोप रहा है संविधान के सीने में
कोई चुगली भेज रहा है मक्का और मदीने में

कोई ढाँचे का गिरना यूएनओ में ले जाता है
कोई भारत माँ को डायन की गाली दे जाता है
कोई अपनी संस्कृति में आग लगाने लगता है
कोई बाबा रामदेव पर दाग लगाने लगता है

सौ गाली पूरी होते ही शिशुपाल कट जाते है
तुम भी गाली गिनते रहना जोड़ सिखाने आया हूँ
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ
(श्रधेय श्री हरीओम पंवार जी की कविता )