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Monday, February 27, 2012

नाहं जानामि केयुरे नाहं जानामि कुण्डले

नूपुर 

लक्ष्मण जी कहते है "नाहं जानामि केयुरे नाहं जानामि कुण्डले । नूपुरे त्वभिजानामि नित्यं पादा वन्दनातु ।।" ....अर्थात न तो मैं इन बाजूबन्दों को जानता हूँ और न इन कुण्डलों को, लेकिन प्रतिदिन भाभी माँ के चरणों में प्रणाम करने के कारण इन दोनों नूपुरों को अवश्य पहचानता हूँ । 
"मर्यादा ज्ञान नही हैं ...आचरण हैं. मन की शुद्धता..जो रिश्तों की गरिमा ही नही उसकी पवित्रता की तुलना माँ (भगवान् से भी ऊपर) जैसी रखी हैं ...........सनातन धर्म यही सिखाता हैं ....अगर सनातन धर्म से जिए तो किसी भी पर्दा प्रथा या नारी अंकुश जेसी रीतियों का पालन नही करना पड़ेगा ........क्यों की सनातन एक वो निकाय(system) हैं जिस के चलते पुरुष तो पुरुष, नारी भी मर्यादाओं का उल्लघंन नही कर सकती" 

Monday, February 6, 2012

CBI न्यायाधिकरण का निर्णय

CBI न्यायाधिकरण का निर्णय चितंबरम के साथ केंद्र सरकार और कांग्रेस के लिये “संकट मोचक” का अंतरिम अवतार सिद्ध हुआ है| इस निर्णय ने पुरे केन्द्र सरकार की रक्षा की है वो भी ठीक राज्य चुनावों के दौरान क्यों की इन चुनाव परिणामों का २०१४ के चुनावों पर व्यापक असर पड़ेगा| वैसे इस प्रकार के निर्णय की प्रबुद्धजनों को ९९% आशा थी | यदि यह निर्णय न आता तो “आऊल-बाबा” के भ्रष्टाचार, मुक्त सर्वश्रेष्ट सरकार देने के वादे की तो पोल खुल जाती| किन्तु केंद्र सरकार इस बात से अभी भी दहशत में है की यह निर्णय “क्लीन चिट्” नहीं है और अपीलीय क्षेत्राधिकार के प्रावधान भी संविधान में पूर्वनिर्धारित है (~वर्षा सिंह) ...जय श्री कृष्ण ....जय भारत वन्देमातरम|

Sunday, February 5, 2012

गाँधी एक आदर्श राष्ट्र-नायक


राष्ट्रपिता तो बहुत दूर की बात है यदि इतिहार को गैर से देखा जाये तो गाँधी एक आदर्श राष्ट्र-नायक भी सिद्ध नहीं होते। अपनी कमजोरियों को दूसरों पर थोपने का पक्षपाती पूर्वाग्रह ही उनका सत्याग्रह और उनकी ताकत थी, सत्य कभी उन्हें दिखता नहीं था और अहिंसा शब्द का वे सदैव दुरुपयोग हि करते थे। मुस्लिमो द्वारा संचालित खिलाफत आन्दोलन जो की प्रारम्भ से ही हिंसक आन्दोलन था। उस आन्दोलन को खुल कर समर्थन किया वही चौरीचौरा काण्ड में कुछ पुलिसकर्मियों के मर जाने के कारण "असहयोग आन्दोलन" वापस ले लिया था।
इस क्षद्मअहिंसावादी की जिद्द ही थी कि भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव पर अंगेजो द्वारा थोपी गई फ़ासी की सजा का विरोध तो दूर किन्तु "गर्म दल वाले" कह कर फ़ासी की सजा को समर्थन अवश्य दिया वास्तव में इन्होने जिद्द और अहिंसा का प्रयोग सकारात्मक क्रांति को कुचलने में किया|
एक तरफ आंतरिक क्रांति और विद्रोह (जिसे गाँधी ने अहिंसा से कुचलने का प्रयास किया) वही दूसरी तरफ द्वितीय-विश्व-युद्ध का भय और शुभाषचन्द्र बोस कि बढती ताकत ने अंग्रेजो की नीद हराम कर रखी थी यदि अंग्रेजो को गाँधी की अहिंसा और सत्याग्रह का संरक्षण न मिलता तो काफी समय पहले हि देश छोड कर भाग गए होते और देश का बटवारा न हुआ होता| इस लिये यह कहना "दे दी हमे आजादी बिना खडग बिना ढाल" हमारे सच्चे क्रांतिकारियों का बहुत बड़ा आपमान है|
कायरता से आजादी नहीं आत्म स्वीकृत गुलामी मिलती है...(वर्षा सिंह) ...जय श्री कृष्ण ...जय भारत वन्देमातरम

Wednesday, February 1, 2012