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Saturday, November 17, 2012

Thursday, November 1, 2012

हिंदू तन मन, हिंदू जीवन, रग हिंदू मेरा परिचय।

हिंदू तन मन, हिंदू जीवन, रग हिंदू मेरा परिचय।
मैं शंकर का क्रोधानल कर सकता जगती छार छार ।
डमरू की वह प्रलय ध्वनि हूँ जिसमें नाचता भीषण संग्हार ।
रणचंडी की की अतृप्त प्यास, मैं दुर्गा का उन्मंत हास ।
मैं यम् की प्रलयंकर पुकार, जलते मरघट का धुंआधार ।
फिर अंतर्मन की ज्वाला से जगती मैं आग लगा दूँ मैं ।
यदि दधक उठे जल, थल, अम्बर, जड़, चेतन तो कैसा विसमए ?
हिंदू तन मन, हिन्दू जीवन, रग रग हिंदू मेरा परिचय ।

मैं आदि पुरूष, निर्भयता का वरदान लिए आया भू पर ।
पय पि कर सब मरते आए, मैं अमर हुआ लो विष पि कर ।
अधरों की प्यास बुझाई है, पि कर मैंने वह आग प्रखर ।
हो जाती दुनिया भस्मसात, जिसको पल बार मैं ही छु कर ।
भय से व्याकुल फिर दुनिया ने प्रारम्भ किया मेरा पूजन ।
मैं नर, नारायण, नीलकंठ बन गया न इसमें कोई संशय ।
हिंदू तन मन, हिंदू जीवन, रग रग हिंदू मेरा परिचय ।

मैं तेजपुंज, तम्लीन जगत मैं फैलाया मैंने प्रकाश ।
जगती का रच करके, कब चाह है निज का विकास ?
शरणागत की रक्षा की है, मैंने अपना जीवन दे कर ।
विश्वास नहीं आता तो साक्षी है यह इतहास अमर ।
यदि आज देल्ली के खंडहर, सदियों की निंद्रा से जागकर ।
गुंजार उठे उचे स्वर से 'हिंदू की जय' तो कैसा विस्मय ?
हिंदू तन मन, हिंदू जीवन, रग रग हिंदू मेरा परिचय ।

मैंने छाती का लहू पिला पाले विदेश के शुधित लाल ।
मुझ को मानव में भेद नेहं, मेरा अंतस्थल वर विशाल ।
जग के ठुकराए लोगों को, लो मेरे घर का खुला द्वार ।
अपना सब कुछ हूँ लुटा चुका, फिर भी अक्षय है धनगर ।
मेरा हीरा पाकर ज्योतित परकीयों का वह राजमुकुट ।
यदि इन चरणों पर झुक जाए वह किरीट तो क्या विस्मय ?
हिंदू तन मन, हिंदू जीवन, रग रग हिंदू मेरा परिचय ।

मैं वीर पुत्र, मेरी जननी के जगती मैं जोहर आपर ।
अकबर के पुत्रों से पुचो क्या याद उन्हें मीना बाज़ार ? ओकर स्वतंत्र
क्या याद उन्हें चित्तोर दुर्ग मैं जलने वाली आग प्रखर ?
जब हाय सहस्त्रों माताएं, तिल-तिल जल कर हो गई अमर ।
वह बुजने वाली आग नहीं, रग-रग मैं उसे समाये हूँ ।
यदि कभी आचानक फूट पड़े विप्लव ले कर तो कैसा विस्मय ?
हिंदू तन मन, हिंदू जीवन, रग रग हिंदू मेरा परिचय ।

होकर स्वतंत्र मैंने कब चाहा है कर लूँ जग कको गुलाम ?
मैंने तो सदा सिखाया है करना अपने मन को गुलाम ।
गोपाल-राम के नामों पर कब मैंने आत्याचार किए ?
कब दुनिया को हिंदू करने घर-घर मैंने नरसंघार किए ?
कोई बतलाये काबुल मैं जा कर कितनी मस्जिद तोडी ?
भूभाग नहीं, शत शत मानव के हृदय जितने का निश्चय ।
हिंदू तन मन, हिंदू जीवन, रग रग हिंदू मेरा परिचय ||"

परम पूज्यनीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी द्वारा रचित

Monday, October 29, 2012

Indian Army Sending Mujahideen to Jannat since 1947


Indian Army 

Providing free transport service to Jannat 
for Mujahideens since 1947

Rush to avail the limited offer and win a chance to meet 72 virgins

Sunday, October 28, 2012

Vietnamese Mahayana Buddhist monk set himself on fire



In 1963 a Vietnamese Mahayana Buddhist monk set himself on fire in protest of the persecution of Buddhists by the government of South Vietnam. Malcolm Browne was there to photograph it, and received a Pulitzer Prize for it. The body of the monk was re-cremated, however his heart remained intact. Buddhists saw this as a symbol of compassion, and saw in him a bodhisattva (enlightenment-being), which made an even bigger impact on the public.

Friday, October 26, 2012

न दैन्यं न पलायनम् - अटल बिहारी वाजपेयी


कर्तव्य के पुनीत पथ को हमने स्वेद से सींचा है,
कभी-कभी अपने अश्रु और प्राणों का अर्ध्य भी दिया है।

किंतु, अपनी ध्येय-यात्रा में हम कभी रुके नहीं हैं।
किसी चुनौती के सम्मुख कभी झुके नहीं हैं।

आज, जब कि राष्ट्र-जीवन की समस्त निधियाँ,
दाँव पर लगी हैं, और,
एक घनीभूत अंधेरा हमारे जीवन के
सारे आलोक को निगल लेना चाहता है;

हमें ध्येय के लिए जीने, जूझने और
आवश्यकता पड़ने पर मरने के संकल्प को दोहराना है।

आग्नेय परीक्षा की इस घड़ी में
आइए, अर्जुन की तरह उद्घोष करें :
‘‘न दैन्यं न पलायनम्।’’

--अटल बिहारी वाजपेयी ‘‘न दैन्यं न पलायनम्।’’

Monday, October 22, 2012

घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ


मैं भी गीत सुना सकता हूँ , शबनम के अभिनन्दन के,
मैं भी ताज पहन सकता हूँ नंदन वन के चन्दन के
लेकिन जब तक पगडण्डी से संसद तक कोलाहल है
तब तक केवल गीत लिखूंगा जन गन मन के क्रंदन के

जब पंछी के पंखो पर हो पहरे बम और गोली के
जब पिंजरे में कैद पड़े हो सुर कोयल की बोली के
जब धरती के दामन पर हो दाग लहू की होली के
कोई कैसे गीत सुना दे बिंदिया कुमकुम रोली के
मैं झोपड़ियों का चारण हूँ आंसू गाने आया हूँ
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ

अन्धकार में समां गए जो तूफानों के बीच जले
मंजिल उनको मिली कभी जो चार कदम भी नहीं चले
क्रांतिकथा में गौण पड़े है गुमनामी की बाहों में
गुंडे तस्कर तने खड़े है राजमहल की राहों में

यहाँ शहीदों की पावन गाथाओं को अपमान मिला
डाकू ने खादी पहनी तो संसद में सम्मान मिला
राजनीति में लोह पुरुष जैसा सरदार नहीं मिलता
लाल बहादुर जी जैसा कोई किरदार नहीं मिलता
ऐरे गैरे नत्थू खैरे तंत्री बनकर बैठे है
जिनको जेलों में होना था मंत्री बनकर बैठे है

लोकतंत्र का मंदिर भी बाज़ार बनाकर डाल दिया
कोई मछली बिकने का बाज़ार बना कर डाल दिया
अब जनता को संसद भी प्रपंच दिखाई देती है
नौटंकी करने वालों का मंच दिखाई देती है

पांचाली के चीर हरण पर जो चुप पाए जायेंगे
इतिहासों के पन्नो में वे सब कायर कहलाये जायेंगे
कहाँ बनेंगे मंदिर मस्जिद कहाँ बनेगी रजधानी
मंडल और कमंडल पी गए सबकी आँखों का पानी

प्यार सिखाने वाले बस ये मजहब के स्कूल गए
इस दुर्घटना में हम अपना देश बनाना भूल गए
कहीं बमों की गर्म हवा है और कहीं त्रिशूल जले
सांझ चिरैया सूली टंग गयी पंछी गाना भूल चले

आँख खुली तो पूरा भारत नाखूनों से त्रस्त मिला
जिसको जिम्मेदारी दी वो घर भरने में व्यस्त मिला
क्या यही सपना देखा था भगत सिंह की फ़ासी ने?
जागो राजघाट के गाँधी तुम्हे जगाने आया हूँ
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ

जो अच्छे सच्चे नेता है उन सबका अभिनन्दन है
उनको सौ सौ बार नमन है मन प्राणों से वंदन है
जो सच्चे मन से भारत माँ की सेवा कर सकते है
हम उनके कदमो में अपने प्राणों को भी धर सकते है

लेकिन जो कुर्सी के भूखे दौलत के दीवाने है
सात समुंदर पार तिजोरी में जिनके तहखाने है
जिनकी प्यास महासागर है भूख हिमालय पर्वत है
लालच पूरा नीलगगन है दो कौड़ी की इज्जत है

इनके कारण ही बनते है अपराधी भोले भाले
वीरप्पन पैदा करते है नेता और पुलिस वाले
केवल सौ दिन को सिंघासन मेरे हाथों में दे दो
काला धन वापस न आये तो मुझको फांसी दे दो

जब कोयल की डोली गिद्धों के घर में आ जाती है
तो बागला भगतो की टोली हंसों को खा जाती है
जब जब भी जयचंदो का अभिनन्दन होने लगता है
तब तब सापों के बंधन में चन्दन रोने लगता है

जब फूलों को तितली भी हत्यारी लगने लगती है
तो माँ की अर्थी बेटों को भारी लगने लगती है
जब जुगनू के घर सूरज के घोड़े सोने लगते है
तो केवल चुल्लू भर पानी सागर होने लगते है

सिंघो को म्याऊँ कह दे क्या ये ताकत बिल्ली में है
बिल्ली में क्या ताकत होती कायरता तो दिल्ली में है
कहते है कि सच बोलो तो प्रण गवाने पड़ते है
मैं भी सच्चाई को गाकर शीश कटाने आया हूँ
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ

कोई साधू सन्यासी पर तलवारे लटकाता है
काले धन की केवल चर्चा पर भी आँख चढ़ाता है
कोई हिमालय ताजमहल का सौदा करने लगता है
कोई यमुना गंगा अपने घर में भरने लगता है

कोई तिरंगे झंडे को फाड़े फूके आज़ादी है
कोई गाँधी को भी गाली देने का अपराधी है
कोई चाकू घोप रहा है संविधान के सीने में
कोई चुगली भेज रहा है मक्का और मदीने में

कोई ढाँचे का गिरना यूएनओ में ले जाता है
कोई भारत माँ को डायन की गाली दे जाता है
कोई अपनी संस्कृति में आग लगाने लगता है
कोई बाबा रामदेव पर दाग लगाने लगता है

सौ गाली पूरी होते ही शिशुपाल कट जाते है
तुम भी गाली गिनते रहना जोड़ सिखाने आया हूँ
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ
(श्रधेय श्री हरीओम पंवार जी की कविता )

Thursday, September 13, 2012

मौत से ठन गई -अटल बिहारी बाजपेयी


maut se than gai atal bihari
|| मौत से ठन गई ! ||

ठन गई! मौत से ठन गई!

जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,

रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई।

मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं।

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ,
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?

तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आज़मा।

मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।

बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं।

प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला।

हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।

आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,
नाव भँवरों की बाँहों में मेहमान है।

पार पाने का क़ायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफ़ाँ का, तेवरी तन गई।

मौत से ठन गई। —

Saturday, September 1, 2012

लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती


लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है,
मन का विश्वास रगों मैं साहस भरता है,
चढ़कर गिरना गिरकर चढ़ना न अखरता है,
मेहनत उसकी बेकार हर बार नहीं होती,
कोशिश करनेवालों की कभी हर नहीं होती।

डुबकियां सिन्धुमें गोताखोर लगता है,
जा जा कर खालीहाथ लौटकर आता है,
मिलते न सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दूना विश्वास इसी हैरानी में,
मुट्ठी उसकी खाली हरबार नहीं होती,
कोशिश करनें वालों की कभी हार नही होती।

असफलता एक चुनौती है स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई देखो और सुधार करो,
जब तक न सफल हो नींद चैन की त्यागो तुम,
संघर्षोंका मैदान छोड़ मत भागो तुम,
कुछ किए बिना ही जयजयकार नही होती,
कोशिश करनें वालों की कभी हार नही होती।

Thursday, August 30, 2012

10 Reasons to Drink Tap Water

Unlike what you see in the ads, bottled water is not cleaner, tastier or more beneficial for the body than tap water. For example, as a research conducted by The Natural Resources Defense Council announced, 22% of bottled waters contain more chemicals than the States health limits. Check out 10 reasons to drink more tap water rather than bottled water:


Friday, June 15, 2012

जयचंदों, मीरज़ाफ़रों का प्रतिकार होना चाहिए


जयचंदों, मीरज़ाफ़रों का प्रतिकार होना चाहिए,
उठा लो शस्त्र हर गद्दार पे अब वार होना चाहिए,

मिटा दो रास्ते सारे जो कायरता सिखाते हैं,
मार्ग शहीदों का ही अब स्वीकार होना चाहिए,

गिडगीडा के माँगॉगे तो भीख दे दी जाएगी,
हक़ के लिए आवाज़ मे, अधिकार होना चाहिए,

हाय बाय को आधुनिकता कहना तुम्हारी भूल है,
संबोधन मे "जय हिंद" का जयकार होना चाहिए

देश के दलालों का सम्मान, नोंच-पोंछ दो
हर चौराहे पे इनका अब तिरस्कार होना चाहिए, 

माँ भारती को बेचते, लजाते नही हैं जो,
उन्ही के रक्त से माँ के चरणों, का सिंगार होना चाहिए, 

जो खुद चल नही पाते, वो क्या देश सम्भालेंगे,
नेता सुभाषचंद्र बोस सा दमदार होना चाहिए,

Wednesday, June 13, 2012

आज "जय श्रीराम" कहने या भगवा धारण करने वाला हमारे देश में साम्प्रदायिक


आज "जय श्रीराम" कहने या भगवा धारण करने वाला हमारे देश में साम्प्रदायिक हो जाता है यदि नरेन्द्र मोदी टोपी पहनने से मना करते है वे सेक्युलर नहीं है ....भाइयो यदि आप हमे टोपी पहनने की इच्छा रखते है तो तिलक और भगवा धारण करने का साहस आपने अंदर उत्पन्न कीजिए
दोहरे मानदंड अब और नहीं चलेगें| वैसे तो सेकुलरिज्म का शाब्दिक अर्थ पंथनिरपेक्षता है किन्तु राजनैतिक अर्थ "तुष्टिकरण" हो गया है| नेताओ ने मुस्लिमो की बुद्धि भ्रष्ट कर दी है या वे स्वयं भ्रष्टबुद्धि है नेता चाहे जितना भ्रष्ट और चोर हो मुल्ला-टोपी पहनले तो उतने मात्र से वो महान हो जाता है और बन जाते है वोट बैंक| इसी लिये एक हिन्दुवादी गर्व से कहता है मै देश भक्त हूँ चाहे कोई कैसी भी टोपी पहने| ..........जय श्री कृष्ण
December 29, 2011

Wednesday, May 9, 2012

When the world says give up.




When the world says give up.
Hope whispers try it one more time.
Never lose hope.
With hope anything is possible. 
~~~ Varsha Singh

Sunday, April 8, 2012

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,

राम प्रसाद बिस्मिल



सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजु-ए-कातिल में है ।
एक से करता नहीं क्यों दूसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफिल में है ।
रहबरे-राहे-मोहब्बत रह न जाना राह में
लज्जते-सेहरा-नवर्दी दूरि-ए मंजिल में है ।
यूँ खड़ा मकतल में कातिल कह रहा है बार-बार
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है?
ऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार
अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफिल में है ।
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमाँ,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है ।
खींच कर लाई है सबको कत्ल होने की उम्मींद,
आशिकों का आज जमघट कूंच-ए-कातिल में है ।
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजु-ए-कातिल में है ।
है लिये हथियार दुश्मन ताक में बैठा उधर
और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
हाथ जिनमें हो जुनून कटते नहीं तलवार से
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से
और भडकेगा जो शोला-सा हमारे दिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
हम तो निकले ही थे घर से बांधकर सर पे कफ़न
जाँ हथेली पर लिये लो बढ चले हैं ये कदम
जिंदगी तो अपनी मेहमाँ मौत की महफ़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
दिल मे तूफानों की टोली और नसों में इन्कलाब
होश दुश्मन के उडा देंगे हमें रोको न आज
दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंजिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

राम प्रसाद बिस्मिल

Friday, March 2, 2012

कृष्ण और सुदामा

कृष्ण और सुदामा की मित्रता आज भी प्रासंगिक है। सुदामा कृष्ण से गुजारे के लिए धन की इच्छा लेकर गए थे, लेकिन सुदामा का हृदय कामनाओं की सतह से ऊंचा था। जहां केवल कृष्ण ही कृष्ण विराज रहे थे। मुंह खोलकर सुदामा ने कुछ मांगा नहीं, हांथ से उठाकर कृष्ण ने कुछ दिया भी नहीं, फिर दोनों मित्रों के बीच में जो आदान-प्रदान हुआ वो किसी से छुपा हुआ नहीं है। जय श्री कृष्ण।।
Krishna Sudama Milan

Monday, February 27, 2012

नाहं जानामि केयुरे नाहं जानामि कुण्डले

नूपुर 

लक्ष्मण जी कहते है "नाहं जानामि केयुरे नाहं जानामि कुण्डले । नूपुरे त्वभिजानामि नित्यं पादा वन्दनातु ।।" ....अर्थात न तो मैं इन बाजूबन्दों को जानता हूँ और न इन कुण्डलों को, लेकिन प्रतिदिन भाभी माँ के चरणों में प्रणाम करने के कारण इन दोनों नूपुरों को अवश्य पहचानता हूँ । 
"मर्यादा ज्ञान नही हैं ...आचरण हैं. मन की शुद्धता..जो रिश्तों की गरिमा ही नही उसकी पवित्रता की तुलना माँ (भगवान् से भी ऊपर) जैसी रखी हैं ...........सनातन धर्म यही सिखाता हैं ....अगर सनातन धर्म से जिए तो किसी भी पर्दा प्रथा या नारी अंकुश जेसी रीतियों का पालन नही करना पड़ेगा ........क्यों की सनातन एक वो निकाय(system) हैं जिस के चलते पुरुष तो पुरुष, नारी भी मर्यादाओं का उल्लघंन नही कर सकती" 

Monday, February 6, 2012

CBI न्यायाधिकरण का निर्णय

CBI न्यायाधिकरण का निर्णय चितंबरम के साथ केंद्र सरकार और कांग्रेस के लिये “संकट मोचक” का अंतरिम अवतार सिद्ध हुआ है| इस निर्णय ने पुरे केन्द्र सरकार की रक्षा की है वो भी ठीक राज्य चुनावों के दौरान क्यों की इन चुनाव परिणामों का २०१४ के चुनावों पर व्यापक असर पड़ेगा| वैसे इस प्रकार के निर्णय की प्रबुद्धजनों को ९९% आशा थी | यदि यह निर्णय न आता तो “आऊल-बाबा” के भ्रष्टाचार, मुक्त सर्वश्रेष्ट सरकार देने के वादे की तो पोल खुल जाती| किन्तु केंद्र सरकार इस बात से अभी भी दहशत में है की यह निर्णय “क्लीन चिट्” नहीं है और अपीलीय क्षेत्राधिकार के प्रावधान भी संविधान में पूर्वनिर्धारित है (~वर्षा सिंह) ...जय श्री कृष्ण ....जय भारत वन्देमातरम|

Sunday, February 5, 2012

गाँधी एक आदर्श राष्ट्र-नायक


राष्ट्रपिता तो बहुत दूर की बात है यदि इतिहार को गैर से देखा जाये तो गाँधी एक आदर्श राष्ट्र-नायक भी सिद्ध नहीं होते। अपनी कमजोरियों को दूसरों पर थोपने का पक्षपाती पूर्वाग्रह ही उनका सत्याग्रह और उनकी ताकत थी, सत्य कभी उन्हें दिखता नहीं था और अहिंसा शब्द का वे सदैव दुरुपयोग हि करते थे। मुस्लिमो द्वारा संचालित खिलाफत आन्दोलन जो की प्रारम्भ से ही हिंसक आन्दोलन था। उस आन्दोलन को खुल कर समर्थन किया वही चौरीचौरा काण्ड में कुछ पुलिसकर्मियों के मर जाने के कारण "असहयोग आन्दोलन" वापस ले लिया था।
इस क्षद्मअहिंसावादी की जिद्द ही थी कि भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव पर अंगेजो द्वारा थोपी गई फ़ासी की सजा का विरोध तो दूर किन्तु "गर्म दल वाले" कह कर फ़ासी की सजा को समर्थन अवश्य दिया वास्तव में इन्होने जिद्द और अहिंसा का प्रयोग सकारात्मक क्रांति को कुचलने में किया|
एक तरफ आंतरिक क्रांति और विद्रोह (जिसे गाँधी ने अहिंसा से कुचलने का प्रयास किया) वही दूसरी तरफ द्वितीय-विश्व-युद्ध का भय और शुभाषचन्द्र बोस कि बढती ताकत ने अंग्रेजो की नीद हराम कर रखी थी यदि अंग्रेजो को गाँधी की अहिंसा और सत्याग्रह का संरक्षण न मिलता तो काफी समय पहले हि देश छोड कर भाग गए होते और देश का बटवारा न हुआ होता| इस लिये यह कहना "दे दी हमे आजादी बिना खडग बिना ढाल" हमारे सच्चे क्रांतिकारियों का बहुत बड़ा आपमान है|
कायरता से आजादी नहीं आत्म स्वीकृत गुलामी मिलती है...(वर्षा सिंह) ...जय श्री कृष्ण ...जय भारत वन्देमातरम

Wednesday, February 1, 2012

Thursday, January 19, 2012

भद्रता और अभद्रता के मध्य का अन्तर समाप्त हो रहा है।


भद्रता और अभद्रता के मध्य का अन्तर समाप्त हो रहा है। आज सबसे ज्यादा अभद्रता और अश्लील; सर्वश्रेष्टता के पुरस्कारो पर विजय हासिल कर रहा है। अब कला बेहूदगी कि अभिव्यक्ति का साधन मात्र रह गई है कला का यह स्वरुप "डर्टी पिक्चर्स" के रूप में अब हमारी संस्कृति पर आघात कर रहा है।

जाकिर नाईक, जन्नतवासी हुसैन हो या दाउद के द्वारा वित्तपोषित फिल्मे; हमारे देश, संस्कृति और संतो को निरंतर अपमानित करने में हि प्रयास रत है। जाकिर नाईक सदृश्य हजारों मुझाहिदीन(जिहादी) आज इंटरनेट पर भी सक्रिय ...वे वेद, पुराण, गीता, भागवत, देवी देवताओ की नित् नये प्रकार से बुराई और अपमान में लिप्त रहते है और हमारे हिन्दू-भाई, अच्छे-बच्चे(Good-Boy) बने निरंतर अपमानो को झेलते रहते है और अपने मन को शांत कर लेते है की कही बिगडैल बच्चो को बुरा न लग जाये। लेकिन यह शांति अब कायरता का सन्देश दे रही है। मेरे ये शब्द साम्प्रदायिक नहीं .......धर्म की रक्षा के लिये है शतप्रतिशत धार्मिक है। किसी को बुरा लगता हो लगे सत्य को साहस की आवश्यकता होती है कहने में भी और स्वीकारने में भी ~ (वर्षा सिंह) ..............जय भारतवन्देमातरम....जय श्री कृष्ण