राष्ट्रपिता तो बहुत दूर की बात है यदि इतिहार को गैर से देखा जाये तो गाँधी एक आदर्श राष्ट्र-नायक भी सिद्ध नहीं होते। अपनी कमजोरियों को दूसरों पर थोपने का पक्षपाती पूर्वाग्रह ही उनका सत्याग्रह और उनकी ताकत थी, सत्य कभी उन्हें दिखता नहीं था और अहिंसा शब्द का वे सदैव दुरुपयोग हि करते थे। मुस्लिमो द्वारा संचालित खिलाफत आन्दोलन जो की प्रारम्भ से ही हिंसक आन्दोलन था। उस आन्दोलन को खुल कर समर्थन किया वही चौरीचौरा काण्ड में कुछ पुलिसकर्मियों के मर जाने के कारण "असहयोग आन्दोलन" वापस ले लिया था।
इस क्षद्मअहिंसावादी की जिद्द ही थी कि भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव पर अंगेजो द्वारा थोपी गई फ़ासी की सजा का विरोध तो दूर किन्तु "गर्म दल वाले" कह कर फ़ासी की सजा को समर्थन अवश्य दिया वास्तव में इन्होने जिद्द और अहिंसा का प्रयोग सकारात्मक क्रांति को कुचलने में किया|
एक तरफ आंतरिक क्रांति और विद्रोह (जिसे गाँधी ने अहिंसा से कुचलने का प्रयास किया) वही दूसरी तरफ द्वितीय-विश्व-युद्ध का भय और शुभाषचन्द्र बोस कि बढती ताकत ने अंग्रेजो की नीद हराम कर रखी थी यदि अंग्रेजो को गाँधी की अहिंसा और सत्याग्रह का संरक्षण न मिलता तो काफी समय पहले हि देश छोड कर भाग गए होते और देश का बटवारा न हुआ होता| इस लिये यह कहना "दे दी हमे आजादी बिना खडग बिना ढाल" हमारे सच्चे क्रांतिकारियों का बहुत बड़ा आपमान है|
कायरता से आजादी नहीं आत्म स्वीकृत गुलामी मिलती है...(वर्षा सिंह) ...जय श्री कृष्ण ...जय भारत वन्देमातरम
मोहनदास करमचंद गांधी एक बहुत ही चतुर घूर्त वकील था , जिसने अहिंसा की आड़ लेकर पहले तो सच्चे देशभक्तोँ को नष्ट कराया और बाद में भारत माता को भी खण्ड - खण्ड करा दिया ।
ReplyDeleteधन्य है वो बारामती के संत , सच्चे समाज सुधारक व समाज सेवक , हिन्दू राष्ट्र समाचार पत्र के यशस्वी संपादक व अखण्ड भारत के स्वप्नदृष्टा वीर महात्मा नाथूराम गोडसे जिन्होंने कालनेमी के अवतार गांधी को मुक्ति देकर भारत को ओर अधिक विभाजित होने से बचा लिया ।
वर्षा सिंह जी कभी मेरे हिन्दी ब्लॉग ' sachसच ' पर पधारे और अपने निर्भिक औजस्वी विचार दें ।
www.vishwajeetsingh1008.blogspot.com